मेवाड़ की सारी प्रजा और सभी राजपूत युवक और सामंत जिनकी भुजा राणा उदय सिंह में हुए आक्रमण का बदला लेने के लिए मचल रही थी उनको प्रताप का राणा न बन पाने की फैसला बिलकुल भी अच्छी नहीं लग रही थी. पर वो सभी महल की राजनीती के विरुद्ध नहीं जा पाए. प्रताप के मन में अपने पिता के प्रति अपार श्रद्धा और आदर था, और साथ ही उनके मन में अपने पुरे परिवार के प्रति सदभाव था इसलिए जगमाल का उन्होंने जरा भी विरोध न किया, बल्कि उन्होंने अपने सारे सामंत को अच्छी तरह से समझा बुझा कर जगमाल के साथ कर दिया. रानी भटियानी प्रताप की शोर्य और सामंतों के बीच उनके प्रभावों से भली भांति परिचित थी, उसे सर था की प्रताप कहीं जगमाल से राज्गद्दी न छीन ले, इसलिए रानी भटियानी ने जगमाल को सावधान कर दिया था की वो प्रताप से जरा संभल कर रहे.
जगमाल किसी भी कीमत में मेवाड़ की गद्दी संभालने योग्य न था, वो भोग विलास में सदैव डूबा रहता था, जगमाल प्रताप की मदद से अपने सभी कमजोरियों को दूर कर सकता था पर जगमाल प्रताप को अपने पास तक भटकने नहीं देता, हर बात में प्रताप को निचा दिखाना और अपने राणा होने का गलत फायदा उठाना अब तो जगमाल के लिए ये आम बात हो गयी थी. वो खुद अपने देवता सामान बड़े भाई प्रताप को शक की नजरों से देखने लगा था. जगमाल की राजनितिक सूझ-बुझ कमजोर थी, राज काज को संभालने एवं व्यक्ति को परखने वाली पैनी नजर उसमे बिलकुल भी न थी, वो अब केवल अपने आप को बहुत महत्व देने लगा था. अपने सभी विशेष सामंतों की अनसुनी करना और केवल अपने फैसले में ही अटल रहना उसकी खूबी बनती चली गयी. कई पुराने सामंत उससे असंतुष्ट रहने लगे. प्रताप अपने स्तर से राज्य की स्थिति को संभालने में प्रयासरत थे. पर जब उन्होंने देखा की राज्य की भविष्य अब अंधकारमय हो चूका है तो उन्होंने एक बड़े भाई के अधिकार से जगमाल को समझाने जा पहुंचे. जगमाल ने प्रताप को देखकर उपरी तौर से पूरा आदर दिखाया. प्रताप ने जगमाल को समझाया की राज्य का बोझ अकेले नहीं उठाया जा सकता इसके लिए उसे सरदारों के राय की आवश्यकता पड़ती है इसलिए तुम्हे पुराने सरदारों के साथ विश्वास को बनाये रखना चाहिए और उनका पूरा पूरा समर्थन और सम्मान देना चाहिए, इतना कहकर प्रताप चले गए. इस बारे में जगमाल ने अपने कुछ चापलूस सामंतों के साथ विचार-विमर्श किया, उन्हें लगा की अगर जगमाल ऐसा करेगा तो उनकी सत्ता खतरे में पद जाएगी, इसलिए उन्होंने जगमाल को अपने ही तरीकों से समझाने लगे, की अगर राणा आप है तो आपकी ही आदेश को सबको माननी पड़ेगी, प्रताप को इस मामले में हस्तक्षेप न करने दे अन्यथा आपका राज वो आपसे छीन लेगा. अंत में निश्चय यह हुआ की पुराने सरदारों का असंतोस स्वाभाविक नहीं है उन्हें प्रताप ने अवश्य उकसाया होगा, और उन्हें महत्व देने के पिछे प्रताप की ही कोई चाल होगी. जगमाल ने अपने चापलूस सामंतों से कहा की राजनीती कहती है की शत्रु सर उठाये उससे पहले ही ……..उसका सर कुचल देना चाहिए. माँ ठीक कहती है प्रताप मेरा भाई नहीं राजनितिक शत्रु है, आखिर मैंने उसका अधिकार छिना है वो चैन से कैसे बैठ सकता है. इतना कहकर जगमाल ने अपने दूत को भिजवा कर तुरंत ही प्रताप को बुला भेजा. उसने प्रताप से कहा की मेवाड़ का राणा मैं हूँ आप नहीं, आपको मेरे राज काज में कोई आपत्ति न ही हो तो अच्छा है, इतनी कर्कश शब्दों को सुनकर प्रताप चिल्लाये “जगमाल” और उनका हाथ तलवार तक चला गया पर जल्द ही उन्होंने अपने आप को संभाल लिया. जगमाल ने कहा “चीखो मत प्रताप सिंह जो मैं कहता हूँ उसे ध्यान से सुनो-मेवाड़ का राणा होने के हैसियत से मैं ये आदेश देता हूँ की तुम अभी इसी वक़्त मेवाड़ की सीमा से बाहर चले जाओ. अर्थात “मातृभूमि से निर्वासन” हाँ तुमने सही सुना मातृभूमि से निर्वासन, प्रताप की भुजाये भड़क उठी, उनके दोनों नेत्र लाल हो गयी, एकाएक उनकी दाहिने हाथ उनके कमर में बंधी तलवार तक पहुंची, उनके तलवार में हल्का सा खिचाव भी पड़ा पर तलवार निकलते निकलते रह गयी, किसी तरह प्रताप ने अपने अपमान की घूंट को पीकर रह गए. प्रताप एक सच्चे राजपूत थे, अगर उन्हें अपमान और मौत में से चुनाव करना होता तो वो मौत ही चुनाव करते पर आज कुछ स्थिति ही दूसरी थी, क्या वो अपने भाई से बदला लेते ये उनके संस्कार के अनुकूल नहीं था इसलिए प्रताप वहां से चुपचाप चले गए. प्रताप बहुत ही विवेकी और आशावादी थे इसलिए उन्होंने जगमाल का तनिक भी विरोध न किया.
प्रताप का मातृभूमि से निर्वासन की खबर सारे मेवाड़ में आग की तरह फ़ैल गयी. सारी प्रजा जगमाल के विरुद्ध हो गयी. प्रताप को दण्डित करने का अर्थ था की मेवाड़ की जनता को दण्डित करना. प्रताप की ख्यति उस समय तक भारतवर्ष के कोने कोने तक पहुँच चुकी थी, एक मात्र राजपूत जिसने न केवल अकबर के सामने घुटने न टेके बल्कि अकबर की विशाल सेना की भी कई दिनों तक दांत खट्टे कर के रख दिए और भी कई सारी खूबियों के कारण प्रताप बहुत प्रचलित हो चुके थे इसलिए उनमे न केवल राजपूत जाती और मेवाड़ की ही नजरें टिकी थी वरन सम्पूर्ण भारतवर्ष के अकबर अधीन राजाओं की नजर भी थी और इस तरह से उनका घोर अपमान कर निर्वासन कर देना किसी तरह से क्षमा योग्य न था. अकबर के सेना चित्तोडगढ में अभी भी मुग़ल ध्वज लहराए हुए है और इस दुखद समय में एक और झटका मेवाड़ के जनता कभी में इसे स्वीकार नहीं करेगी. सारे मेवाड़ के लोग हड़ताल करने लगे और जगमाल को बुरा भला कहने लगे. कई सामंत भी जगमाल के विरुद्ध हो गए
जगमाल किसी भी कीमत में मेवाड़ की गद्दी संभालने योग्य न था, वो भोग विलास में सदैव डूबा रहता था, जगमाल प्रताप की मदद से अपने सभी कमजोरियों को दूर कर सकता था पर जगमाल प्रताप को अपने पास तक भटकने नहीं देता, हर बात में प्रताप को निचा दिखाना और अपने राणा होने का गलत फायदा उठाना अब तो जगमाल के लिए ये आम बात हो गयी थी. वो खुद अपने देवता सामान बड़े भाई प्रताप को शक की नजरों से देखने लगा था. जगमाल की राजनितिक सूझ-बुझ कमजोर थी, राज काज को संभालने एवं व्यक्ति को परखने वाली पैनी नजर उसमे बिलकुल भी न थी, वो अब केवल अपने आप को बहुत महत्व देने लगा था. अपने सभी विशेष सामंतों की अनसुनी करना और केवल अपने फैसले में ही अटल रहना उसकी खूबी बनती चली गयी. कई पुराने सामंत उससे असंतुष्ट रहने लगे. प्रताप अपने स्तर से राज्य की स्थिति को संभालने में प्रयासरत थे. पर जब उन्होंने देखा की राज्य की भविष्य अब अंधकारमय हो चूका है तो उन्होंने एक बड़े भाई के अधिकार से जगमाल को समझाने जा पहुंचे. जगमाल ने प्रताप को देखकर उपरी तौर से पूरा आदर दिखाया. प्रताप ने जगमाल को समझाया की राज्य का बोझ अकेले नहीं उठाया जा सकता इसके लिए उसे सरदारों के राय की आवश्यकता पड़ती है इसलिए तुम्हे पुराने सरदारों के साथ विश्वास को बनाये रखना चाहिए और उनका पूरा पूरा समर्थन और सम्मान देना चाहिए, इतना कहकर प्रताप चले गए. इस बारे में जगमाल ने अपने कुछ चापलूस सामंतों के साथ विचार-विमर्श किया, उन्हें लगा की अगर जगमाल ऐसा करेगा तो उनकी सत्ता खतरे में पद जाएगी, इसलिए उन्होंने जगमाल को अपने ही तरीकों से समझाने लगे, की अगर राणा आप है तो आपकी ही आदेश को सबको माननी पड़ेगी, प्रताप को इस मामले में हस्तक्षेप न करने दे अन्यथा आपका राज वो आपसे छीन लेगा. अंत में निश्चय यह हुआ की पुराने सरदारों का असंतोस स्वाभाविक नहीं है उन्हें प्रताप ने अवश्य उकसाया होगा, और उन्हें महत्व देने के पिछे प्रताप की ही कोई चाल होगी. जगमाल ने अपने चापलूस सामंतों से कहा की राजनीती कहती है की शत्रु सर उठाये उससे पहले ही ……..उसका सर कुचल देना चाहिए. माँ ठीक कहती है प्रताप मेरा भाई नहीं राजनितिक शत्रु है, आखिर मैंने उसका अधिकार छिना है वो चैन से कैसे बैठ सकता है. इतना कहकर जगमाल ने अपने दूत को भिजवा कर तुरंत ही प्रताप को बुला भेजा. उसने प्रताप से कहा की मेवाड़ का राणा मैं हूँ आप नहीं, आपको मेरे राज काज में कोई आपत्ति न ही हो तो अच्छा है, इतनी कर्कश शब्दों को सुनकर प्रताप चिल्लाये “जगमाल” और उनका हाथ तलवार तक चला गया पर जल्द ही उन्होंने अपने आप को संभाल लिया. जगमाल ने कहा “चीखो मत प्रताप सिंह जो मैं कहता हूँ उसे ध्यान से सुनो-मेवाड़ का राणा होने के हैसियत से मैं ये आदेश देता हूँ की तुम अभी इसी वक़्त मेवाड़ की सीमा से बाहर चले जाओ. अर्थात “मातृभूमि से निर्वासन” हाँ तुमने सही सुना मातृभूमि से निर्वासन, प्रताप की भुजाये भड़क उठी, उनके दोनों नेत्र लाल हो गयी, एकाएक उनकी दाहिने हाथ उनके कमर में बंधी तलवार तक पहुंची, उनके तलवार में हल्का सा खिचाव भी पड़ा पर तलवार निकलते निकलते रह गयी, किसी तरह प्रताप ने अपने अपमान की घूंट को पीकर रह गए. प्रताप एक सच्चे राजपूत थे, अगर उन्हें अपमान और मौत में से चुनाव करना होता तो वो मौत ही चुनाव करते पर आज कुछ स्थिति ही दूसरी थी, क्या वो अपने भाई से बदला लेते ये उनके संस्कार के अनुकूल नहीं था इसलिए प्रताप वहां से चुपचाप चले गए. प्रताप बहुत ही विवेकी और आशावादी थे इसलिए उन्होंने जगमाल का तनिक भी विरोध न किया.
प्रताप का मातृभूमि से निर्वासन की खबर सारे मेवाड़ में आग की तरह फ़ैल गयी. सारी प्रजा जगमाल के विरुद्ध हो गयी. प्रताप को दण्डित करने का अर्थ था की मेवाड़ की जनता को दण्डित करना. प्रताप की ख्यति उस समय तक भारतवर्ष के कोने कोने तक पहुँच चुकी थी, एक मात्र राजपूत जिसने न केवल अकबर के सामने घुटने न टेके बल्कि अकबर की विशाल सेना की भी कई दिनों तक दांत खट्टे कर के रख दिए और भी कई सारी खूबियों के कारण प्रताप बहुत प्रचलित हो चुके थे इसलिए उनमे न केवल राजपूत जाती और मेवाड़ की ही नजरें टिकी थी वरन सम्पूर्ण भारतवर्ष के अकबर अधीन राजाओं की नजर भी थी और इस तरह से उनका घोर अपमान कर निर्वासन कर देना किसी तरह से क्षमा योग्य न था. अकबर के सेना चित्तोडगढ में अभी भी मुग़ल ध्वज लहराए हुए है और इस दुखद समय में एक और झटका मेवाड़ के जनता कभी में इसे स्वीकार नहीं करेगी. सारे मेवाड़ के लोग हड़ताल करने लगे और जगमाल को बुरा भला कहने लगे. कई सामंत भी जगमाल के विरुद्ध हो गए
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