प्रताप का महाराणा के रूप में संकल्प

प्रताप के निर्वासन की खबर सुन कर पुरे मेवाड़ नगरी की प्रजा में आक्रोश से भर गयी, कई लोग प्रताप की गुणगान करते नही थक रहे थे। कुछ गाँव वाले अपने में बात कर रहे थे की प्रताप ही मेवाड़ के असली महाराणा है, उदय सिंह छोटी रानी भटियानी से ज्यादा प्यार करते थे इसलिए जगमाल को राजा बना दिया जो की दिन भर नशे में धुत रहता है। इसपर दुसरे गाँव वाले ने कहा की सही कहा उस दिन 6 मुग़ल सैनिक हमारी गाँव के एक लड़की के साथ दुष्कर्म कर रहे थे तभी प्रताप वहां पहुँच कर अकेले ही उन छः मुग़ल सैनिकों से भीड़ गए और उसका संहार कर उस लड़की की इज्जत को बचाया। इतना सुनते ही दुसरे व्यक्ति ने कहा की हाँ हाँ सही कह रहे हो एक दिन मेरी बैल गाडी खेत में कीचड़ में फंस गयी थी कितनी कोशिश के बाद भी वह नहीं निकला, प्रताप ने जैसे ही मुझे देखा वो एक राजकुमार होते हुए भी मेरी मदद के लिए कीचड़ में घुस आये, एक महराणा होने के सारे गुण प्रताप में मौजूद है, प्रताप ही हमारे महाराणा है और हम उनका निर्वासन कैसे देख सकते है, राजपूताने के कई राजा ने तो अकबर के सामने घुटने टेक दिये है एक प्रताप ही उसको चुनौती दे सकते है, वे हमारे स्वाधीनता के अंतिम आशा है और किसी भी हालत में उनका निर्वासन नहीं होने देंगे।
उदयपुर के कई सरदार जगमाल के इस फैसले से पहले से ही बौखलाए हुए थे, उनकी सलाह के बिन जगमाल ने इतनी बड़ी फैसला कैसे कर लिया था। प्रताप के मामा झालावाड़ नरेश इस फैसले से बहुत ज्यादा क्षुब्ध थे, मेवाड़ के कई सामंतों ने अपनी आक्रोश को उनके सामने व्यक्त किया। झालावाड के नरेश ने अपनी नेतृत्व सामंतों को प्रदान किया और यह निर्णय लिया गया की जगमाल को गद्दी से हटाया जायेगा और प्रताप को मेवाड़ का महाराणा बनाया जायेगा। इतना निर्णय लेकर वो महल की ओर जाने लगे, रास्ते में उन्हें मेवाड़ के गाँव के कई लोग मिले। सामंतों को आता देख सभी लोग ने चुप्पी साध ली, उसमे से एक व्यक्ति ने आगे बढ़ कर कहा की ये हमारे साथ क्या हो रहा है सरदार, हमारे साथ इतना बड़ा अन्याय क्यो हो रहा है ? जहाँ प्रताप को मेवाड़ का राणा होना था वहां एक विलासी बैठा मौज कर रहा है, और हमारे असली महाराणा को निर्वासन? सरदार उनका दुःख समझ रहे थे, इस पर चुण्डावत कृष्ण जो की सामंतों के सरदार थे आगे बढ़ के कहा की हम खुद ही मेवाड़ की राजनीती से विस्मित है और आप सब हमारा विश्वास करे की मेवाड़ के असली उत्तार्धिकारी को ही मेवाड़ का महाराणा बनाया जायेगा ये हम सब का वचन है। इतना बात सामंतों और लोगो के बीच हो ही रहा था की साधारण वेशभूषा में प्रताप अपने घोड़े में कुछ सामन के साथ नजर आये, सभी आश्चर्य से प्रताप को देखते रह गए, सभी को समझते ये देर न लगी की प्रताप निर्वासन के फैसले के अनुसार मेवाड़ को छोड़ कर जा रहे है। सभी लोगों ने प्रताप का रास्ता रोक लिया और फिर चुण्डावत कृष्ण जी ने आगे बढ़कर कहा की “रुक जाइये प्रताप आप मेवाड़ की सीमा को नहीं लांघेगे, मेवाड़ की समस्त जनता आपका प्रतीक्षा कर रहे है”। प्रताप ने अपने घोड़े की लगाम को खींचते हुए कहा की लेकिन चुण्डावत जी जगमाल मेवाड़ का राजा है और उसने मुझे निर्वासन का आदेश दिया है, इसपर चुण्डावत गरजने लगे और कहने लगे की “जगमाल निरा मुर्ख है, उसे राज काज की समझ कहाँ है और ये बात आपको और हम सब को भली भांति अच्छी तरह से पता है। आप ही मेवाड़ के राणा है इसलिए आपको ही मेवाड़ के राजगद्दी में बैठना होगा। उदयपुर के साथ साथ सारे मेवाड़ की जनता और सामंतों की ओर से सन्देश लेकर मैं आपके पास आया हूँ। क्या आपको अपने पिता से किया वायदा याद नहीं चित्तोडगढ अभी भी मुगलों के हाथ में है और आपको ही उसे मुगलों से आजाद करवाना है। इसपर प्रताप ने बड़े ही विनम्रता से कहा को जगमाल मेरा छोटा भाई है उसके विरुद्ध मैं तलवार नहीं उठाऊंगा, मुझे अपने भाई के साथ युद्ध कर राज काज भोगने की कोई इच्छा नहीं है। चुण्डावत निकट आते हुए कहा की आपको वापस चलना ही होगा अन्यथा मेवाड़ आपके बिना अनाथ हो जायेगा, मेवाड़ की जनता ये सदमा बर्दाश्त नहीं कर पायेगी। उनका धैर्य का बाण टूट जायेगा। प्रताप ने कहा की क्या एक एक भाई को भाई के विरुद्ध विद्रोह करना शोभा देगा, विद्रोह तब होगा जब आप नहीं चलोगे, मेवाड़ की जनता अपना संतुलन खो बैठेगी और विद्रोही सरदार अपने म्यान से तलवार निकाल आएगी, और पूरा का पूरा मेवाड़ गृह युद्ध की चपेट में आ जायेगा। इस तरह काफी देर तक बहस करने के बाद प्रताप को एहसास हो गया की चुण्डावत सही कह रहे है, मेवाड़ को उनकी आवश्यकता है और उन्हें मेवाड़ की उन्हें। वे अपनी जन्मभूमि, मातृभूमि से दूर कैसे जा सकते थे,उन्हें दूर जाना भी नहीं चाहिए, राज्य का अधिकार उन्हें सुख भोगने के लिए नहीं बल्कि उन्हें स्वाधीनता की रक्षा करने के लिए उन्हें करना ही पड़ेगा, यह एक चुनौती है और इससे भागना अब मात्र एक पलायन होगा। प्रताप और सारे सामंतों ने अपना घोडा उदयपुर की ओर मोड़ लिया। इधर जगमाल प्रताप के निर्वासन से निश्चिन्त हो गया था की उसका एकमात्र कांटा को उसने निकाल फेंका है, वह अब और ज्यादा विलाशभोगी हो गया था, उसके चापलूस सामंत अब राजकोष के धन में सेंध लगाने लगे थे। अगली ही सुबह जगमाल ने अपने सामने चुण्डावत कृष्ण के साथ प्रताप को देखा तो उसे अपने आँखों में विश्वास न हुआ, रात भर पि हुई मदिरा की नशा एक पल में ही ओझल हो गयी।
जगमाल सिंहासन में बैठा था सभी चापलूस सरदार अपनी अपनी ओट लिए हुए था। इतने में चुण्डावत ने अपनी गर्जना भरे स्वर में कहा की “जगमाल छोड़ दो ये सिंहासन” जगमाल ने कहा –“चुण्डावत सरदार आप होश में तो है”
“हाँ कुमार” अब हम सब होश में आ गए है। उस दिन हम सब वास्तव में होश में नहीं थे जबब महाराणा उदय सिंह ने तुम्हे राणा बनाया था। तुम इसके तनिक भी योग्य नहीं हो। हमने तुम्हे राणा के रूप में अवश्य ही स्वीकार किया है पर तुम इसके जरा भी योग्य नहीं हो तुमने इस सिंहासन का अपमान किया है। जगमाल क्रोधित हो गया और अपने सैनिकों को आदेश दिया की पकड़ लिया जाए इस चुण्डावत सरदार को। सभी सैनिकों के साथ साथ सभी सरदारों ने भी अपने आँखों को झुका लिया, उनके हाथ तलवार की मुठ में अवश्य थे पर चुण्डावत के विरुद्ध जाना उनके वश में न था, किसी ने भी उस समय अपनी तलवार अपने म्यान से निकालने की चेष्टा तक न की, जगमाल ने सभी सामंतों के तरफ नजर दौड़ाई सभी शांत थे। पुरे दरबार में सन्नाटा छा गया था। जगमाल झट से अपनी तलवार निकाला और प्रताप की ओर देखते हुए बोला अपनी तलवार निकालो प्रताप अभी फैसला हो जायेगा। प्रताप का हाथ झट से तलवार पर गया पर छू कर वापस आ गया, वो चुण्डावत को देखने लगे, जैसे की वो कहना चाहते हो की उन्हें सिंहासन तो चाहिए लेकिन इस तरह नहीं। चुण्डावत समझ गए थे की प्रताप क्या कहना चाहते है इसलिए उन्होंने झट से अपनी तलवार निकलते हुए कहा की सभी लोग अपनी तलवार निकाल कर इसे बता दो की हम सब प्रताप है, चुन्दावत की आदेश सुनते ही सभी ने अपने तलवार को म्यान से बाहर निकाल लिया और जगमाल को घेर लिया। इतने देखते ही जगमाल का सारा नशा पल भर में उड़ गया। सभी सरदारों ने एक स्वर में चिल्लाने लगे की हम सब प्रताप के साथ है। इसे देख कर जगमाल चुण्डावत सरदार कृष्ण के प्रति प्रतिशोध की भावना से धधक उठा वो नंगी तलवार लिए चुण्डावत की ओर लपके और उनमे वार किया, चुण्डावत सरदार पहले से तैयार खड़े थे उन्होंने एक वार में ही जगमाल के तलवार की दो टुकड़े कर डाले। इतना देख कर दो सैनिकों ने जगमाल को पकड़ लिया। उसी समय प्रताप को पुरे विधि अनुसार प्रताप को राणा घोषित किया गया। चुण्डावत ने स्वयं अपने हाथों से उनके मस्तक में टीका चढ़ाया और राजश्री छत्र पहनाया। और उनका अभिनन्दन करते हुए कहा की अब आप ही हमारे आन, बान और शान हो। मेवाड़ ही नहीं पूरा भारतवर्ष आपके शोर्य की वीर गाथा कहे। अपने बाहुबल से एक नया इतिहास लिखो, ऐसी हमारी कमाना है।
प्रताप बहुत गंभीर थे, गंभीर चेहरे में हलकी सी मुस्स्कान को बड़ी मुस्किल से बाहर आने दे रहे थे। फिर कुछ शब्द उभर कर आये, मेवाड़ के महाराणा की जय, हमारे महाराणा प्रताप की जय। सारे दरबार में महाराणा प्रताप की जय जयकार होने लगी। यह जयजयकार इतनी ऊँची थी की सारा महल इस ध्वनि से गूँज उठा था, सभी सामंतों में ख़ुशी की लहर से छाई हुई थी, जयजयकार की आवाज सुनकर जगमाल सिहर उठा था। मेवाड़ की सेना को और जनता को जब ये समाचार मिला की प्रताप अब महराणा बन चुके है तब उनमे ख़ुशी का ठिकाना न रहा, यूँ लगा मानो अनाथ बच्चे को उसका खोया हुआ माता-पिता मिल गए हो। सारी मेवाड़ की धरती महाराणा प्रताप की जय, मेवाड़नाथ की जय से कांप उठी। तभी एक सैनिक ने सलीके से सजाई हुई बप्पा रावल की तलवार को लिए दरबार में उपस्थित हुआ। चुण्डावत ने उस तलवार को उठाई और महाराणा प्रताप के हनथो में दे दी। सारा मेवाड़ में मानो आज कोई उत्सव मनाया जा रहा हो ऐसा प्रतीत होने लगा था। इस तरह से चुण्डावत सरदार ने तलवार देने की रस्म पूरी की। महाराणा प्रताप को तलवार देने के बाद चुण्डावत सरदार ने कहा की –“हे क्षत्रिये कुल दिवाकर ये हमरे पूर्वज बाप्पा रावल की तलवार है जिसे हम सदियों से चितोड़ की देवी मानते है आज वही चितौड़ मुगलों के कब्जे में है। मुगलों ने जब चितौड़ में कब्ज़ा किया था तब वहां के हर एक मंदिर और प्रतिमाओं की टुकड़े टुकड़े कर दिए, वहां के पंडितों और विद्वानों को अपमानित किया, राजपूतों पर मुगलों की अत्याचार की गवाह है ये तलवार, तब से समस्त मेवाड़ मुगलों से पप्रतिशोध के ज्वाला में जल रहा है, चितौड़ की पराजय से मेवाड का मस्तक झुक गया है, मैं ये तलवार इसी आशा के साथ सौंपा हूँ की आप चितौड़ के अपमान का बदला लेंगे और फिर से चितौड़ को मेवाड़ का भाग बनायेगे। ये आपके मस्तक में चढ़ा मुकुट आपके शोभा और वैभव नहीं है अपितु आपके लिए एक चुनौती है, की आप हमारा खोया हुआ स्वाभिमान और स्वाधीनता वापस लायेंगे। प्रजा जनों की रक्षा और विकास की चुनौती भी आप ही की जिम्मेदारी होगी। इसतरह तालियों की गडगड़ाहट के बिच चुण्डावत सरदार कृष्ण का भाषण समाप्त हुआ। फिर महाराणा प्रताप उठे उन्होंने तालियों के बीच सबका अभिवादन किया और फिर अपना तलवार को खींचते हुए कहा की मैं राणा प्रताप बप्पा रावल की इस पूजन्य तलवार की सौगंध खा कर कहता हूँ की इस तलवार को सौंपकर चुण्डावत जी नें जो दायित्व मुझे सौंपा है उसे मैं अवश्य पूरा करूँगा। अपने स्वाभिमान और मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दूंगा। मैं कभी किसी शत्रू के सामने अपना मस्तक नहीं झुकाऊँगा। अपने शत्रु से चितौड़गढ़ को वापस लूँगा और चितौड़ पतन के समय हम पर हुए अत्याचारों का बदला लेना मेरा परम ध्येय रहेगा। इसके बाद प्रताप मौन हो गए और फिर इसके बाद प्रताप ने वो संकल्प लिया जो की प्रताप के जीवन का मुख्य भाग था और जिसके लिए वो हमेशा हमेशा के लिए प्रचलित रहेंगे उन्होंने प्रण लिया की:- ”माँ भवानी और भगवान् एकलिंग (शंकर) की सौगंध खाकर प्रतिज्ञा करता हूँ , कि जब तक मेवाड़ का चप्पा-चप्पा भूमि को इन विदेशियों से स्वतंत्र नहीं करा लूँगा, चैन से नहीं बैठूँगा। जब तक मेवाड़ कि पुण्यभूमि पर एक भी स्वतंत्रता का शत्रु रहेगा, तब तक झोपडी में रहूँगा, जमीं पर सोऊंगा, पत्तलों में रुखा-सुखा खाना खाऊंगा, किसी भी प्रकार का राजसी सुख नहीं भोगूँगा, सोने-चांदी के बर्तन और आरामदायक बिस्तर की तरफ कभी आँख उठाकर भी नहीं देखूंगा ! बोलिए, क्या आप सब लोग मेरे साथ कष्ट और संघर्ष का जीवन व्यतीत करने के लिए तैयार है ?”
“हम सब अपने महाराणा के एक इशारे पर अपना तन-मन, सब कुछ न्योछावर कर देंगे !” चारों तरफ से सुनाई दिया।“द्रढ़ इरादे वाले लोगों और राष्ट्रों को कोई बड़ी से बड़ी शक्ति भी पराधीन नहीं रख सकती ।” राजगुरु ने कहा — “इस पवित्र ललकार को सुनने के लिए मेरे कान जाने कब से व्याकुल हो रहे थे, प्रताप!””शत्रुओं द्वारा मात्रभूमि के किये गए अपमान का बदला गिन-गिनकर तलवार की नोक से लिए जायेगा । चप्पा चप्पा भूमि की रक्षा के लिए यदि खून की नदियाँ भी बहानी पड़ी, तो मेरे मुख से कभी उफ़ तक न निकलेगा । आप लोगों ने मुझे जो स्नेह और विश्वास प्रदान किया है, प्रताप दम में दम रहते उस पर रत्ती-भर भी आंच न आने देगा ! जय स्वदेश! जय मात्रभूमि ! जय मेवाड़ ! ”
उसके बाद सभी उपस्थित सरदारों, सामंतों और दरबारियों ने मात्रभूमि की स्वतंत्रता और रक्षा के प्रति निष्ठावान रहने की शपथ ली । अपने नए महाराणा प्रताप का अभिवादन किया ।
प्रताप को राणा बनते देख पूरा राजपुताना दो खेमों में बंट गया था, एक ओर वो थे जिन्होंने अपना स्वाभिमान अकबर को बेच दिया था और दुसरे वो थे जिनके पास स्वाभिमान तो था पर सागर जैसे सेना और ताकतवर मुग़ल सामराज्य से लोहा लेने की ताकत न थी इसलिए वैसे राजाओं ने प्रताप के राणा बनने में ख़ुशी जाहिर की ।
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