अनंगपाल ने तो दिल्ली को पृथ्वीराज के हाथों में सौंप कर बदरिकाश्रम चले गए पर वो साथ ही भारत के कई राजाओं, जयचंद्र और मुहम्मद गौरी के मन द्वेष में भावना भी जला गए। दिल्ली प्राप्ति ने अन्य राजाओं के मन में सुलगती आग में घी का काम किया। जयचंद्र एक बलवान राजा था जिस समय उसे यह समाचार मिला की अनंगपाल ने दिल्ली का सिंहासन पृथ्वीराज को दे दिया है वह क्रोध से अधीर हो उठा, परन्तु अभी कुछ करने का सही अवसर नहीं है यह सोच कर वह चुप रह गया। हलाकि उसने उसी समय कुछ नहीं किया पर ये आग भीतर ही भीतर सुलगती रही और इसीका बहुत ही भयानक फल ये हुआ की भारत को 900 वर्षो तक मुसलमानों के जंजीर में बंधना पड़ा। मुहम्मद गौरी हमेशा ही पृथ्वीराज से अपने अपमान की बदला लेने में लगा रहता था। वह पृथ्वीराज चौहान से युद्ध कर के युद्ध का अंजाम देख चूका था , और ये सोचने के लिए मजबूर हो रहा था की जब पृथ्वीराज के पास केवल अजमेर थी तब हमें इतनी बड़ी हर दे गया अब तो उसके पास दिल्ली राज्य भी आ गया अब तो उसे हराना और भी मुस्किल हो गया है। अब मुहम्मद गौरी नि कुछ चालाकी से काम लेना शुरू किया, इसके लिए उसने एक माधव भाट नाम के मनुष्य का सहारा लिया। माधव भाट बहुत ही बुद्धिमान,चतुर और कई भाषाओं का जानकर था, गौरी ने उसे पृथ्वीराज का भेद जानने के लिए भारत भेजा। भारत पहुँच कर माधवभाट ने अपनी बुद्धिमता का परिचय दिया और थोड़े ही समय में उसने पृथ्वीराज के दरबार में कितने ही सामंतों के बीच प्रियपात्र बन बैठा। पृथ्वीराज के दरबार में एक धर्मायण नाम का कार्यस्थ था, इसे ही माधव भाट ने अपनी कौशल से फंसा लिया और इसी के माध्यम से पृथ्वीराज के बहुत सारी बातें मालूम कर ली। इसी के माध्यम से वो पृथ्वीराज के समीप पहुँच सका और उनका कृपापात्र बन बैठा। राजा की कृपा दृष्टी देखकर अन्य मनुष्य भी उसे आदर की भावना से देखने लगे थोड़े ही समय में उसने पृथ्वीराज के नैतिक, व्यवहारिक, चालों की पूर्ण समीक्षा एवं अन्य सामंतों और राज्य कर्मचारियों की पूरी पूरी जानकारी एकत्र कर वो पृथ्वीराज से विदा लिया और गजनी आ गया। किसी ने उसे नहीं पहचाना की वो कौन था या फिर उसका उद्देश्य क्या था। वापस गजनी जाकर माधव भाट ने गौरी को पृथ्वीराज एवं उनके सभी वीरों की पूरी जानकारी दे दी, पृथ्वीराज की वैभव को देखकर वो जल गया। और अपने लुब्ध दृष्टी के कारण अपने बड़े बड़े सरदारों को एकत्र कर दरबार लगाया, दरबार में सभी सरदारों के सामने माधव ने पृथ्वीराज की सारी बातें कही, तर्क वितर्क करने के बाद गौरी के सामने ये बात रखा गया की ये एक हिन्दू है और इसकी बात का भरोसा नहीं करना चाहिए, संभव ही ये उनके साथ मिल कर हमें धोखा दे रहा हो इसलिए हमें किसी और आदमी को पृथ्वीराज का भेद लेने भेजना चाहिए, गौरी ने उनकी बात मान ली और मुहम्मद खां फ़क़ीर के भेष में दिल्ली जा पहुँच पृथ्वीराज के भेद जानने लगा, धर्मायन ने उसे भी सब बता दिए, और वापस आकर उसने भी वही बातें कही जो की मधाव भाट ने कही थी। अब गौरी अपने सरदारों के साथ विचार विमर्श करने लगा, सरदारों ने पृथ्वीराज के शोर्य की प्रसंसा अवश्य ही की लेकिन साथ ही साथ ये भी कहा की धर्मयां के कारण हम अवश्य ही जीतेंगे। कुछ ही दिन में मुहम्मद गौरी आक्रमण के लिए फिर से चल पड़ा। गजनी से चलकर तीनदिनों में वह नरोल के पास अपना पड़ाव डाला और वहां पर उसके अन्य सामंत और सरदार भी आकर उससे मिल गए अब गौरी एक बहुत बड़ी सेना लेकर पृथ्वीराज से युद्ध करने चल दिया, चंदरबरदाई के अनुसार उस समय गौरी के पास दो लाख सेना थी। जब गौरी सिंध पार कर चूका था तब पृथ्वीराज को गौरी के आक्रमण के खबर मिली, उन्होंने तुरंत ही अपने प्रधानमंत्री कैमाश से पूछा की क्या करना चाहिए तो कैमाश ने सलाह दी की दुश्मन को अपने राज्य में प्रवेश नहीं करने देना चाहिए बल्कि हमें आगे बढ़कर की दुश्मन को उसके किये का दंड देना चाहिए, पृथ्वीराज और उनके अन्य सामंतों को कैमाश की ये बात अच्छी लगी। अब पृथ्वीराज ने अपनी सत्तर हज़ार सेना लेकर पानीपत नाम के एक जगह पर युद्ध के लिए जा पहुंचे, मुहम्मद गौरी की सेना भी बढ़ी चली आ रही थी तुरंत ही दोनों दलों का सामना हो गया, बहुत ही भीषण युद्ध होने लगा, धोंसो की धुनकार तथा मारू बाजे की झंकार और वीरों के हुंकार से सेना का उत्साह बराबर बढ़ता जा रहा था, दोनों ओर के वीर योद्धा अपने स्वामियों की जयजयकार करते हुए अपने प्राणों को न्योछावर करने आगे बढ़ते गए। पृथ्वीराज चौहान और उनके वीर सामंतों ने ऐसे वीरता दिखाई की यवनी के पांव उखड गए, मुहम्मद गौरी ने अपनी सेना में फिर से साहस दिलाई और फिर से युद्धक्षेत्र में ला कर खड़ा कर दियाक, पर इसका कोई फल नहीं हुआ वीर पृथ्वीराज और कान्हा जिस ओर मुड़ते यवनी सेना उधर ही साफ़ हो जाती कोई मुसलमान इनकी ओर आने का हिम्मत नहीं करता, पृथ्वीराज कितने ही सेना को अकेले ही मार गिराया, जल्द ही चामुंडराय ने मुहम्मद गौरी को बंदी बना लिया और पृथ्वीराज की जयजयकार से सारा वातावरण गूँज उठा। चन्द्रबरदाई के अनुसार ये युद्ध सन 1168 वैशाख सुदी 10 को हुआ था। इस युद्ध में पृथ्वीराज की ओर से भीम, भरावाह,श्यामदास,जस्घवल,केसरी सिंह,रणवीर सोलंकी,सागरह खिची,महत राय,हरिप्रमार,वीरध्वज,भीमसिंह बघेल,लखन सिंह, आदि सामंतों के साथ 10000 सैनिक भी मारे गए, जबकि गौरी की ओर से शेर खां,सुल्तान खां,मीर अहमद,मारुमीर,मीर्जहाँ,मीर जुम्मन,गज़नी खां,हसन खां, के साथ दस मुख्य सैनिक और 18000 सैनिक मरे गए थे। मुहम्मद गौरी को पृथ्वीराज ने एक महीने तक कैदखाना में रखा, और मुहम्मद गौरी के पृथ्वीराज चौहान के क़दमों में गिर कर अपने जीवन की भीख मांगने पर पृथ्वीराज चौहान ने उसे कुछ धन देकर छोड़ दिया।
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