Chandragupta Maurya · June 24, 2021

विश्वविजय पर निकले सिकंदर के सपने को चूर करने वाले चन्द्रगुप्त मौर्य की कहानी

Chandragupta Maurya History in Hindi: अक्सर लोगों को ‘जो जीता वही सिकंदर’ वाली कहावत कहते हुए सुना जाता है। लेकिन इतिहास में देखें तो पता चलता है कि विश्व विजय के उद्देश्य के साथ निकले सिकंदर का किसी ने अगर हौसला तोड़ा तो वो चन्द्रगुप्त मौर्य थे। कहावत में बेशक सिकंदर को जीता हुआ कहा जाता है, लेकिन सिकंदर के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा भारत में चन्द्रगुप्त ने ही रोका था। वो भारत के कुछ राज्यों को ही जीत पाया था। बाहरी देशों में सिकंदर ने ईरान, सीरिया, मिस्र, मेसोपोटामिया, गाझा पर जीत हासिल की थी, वहीं भारत में तक्षशिला और पंजाब पर जीत हासिल की थी, जबकि तक्षशिला के राजा ने तो सिकंदर के डर से उसे संधि कर ली थी। 

chandragupt maurya history in hindi

आचार्य चाणक्य द्वारा चंद्रगुप्त मौर्य और राजा पुरु को प्रोत्साहन

आचार्य चाणक्य के शिष्य चन्द्रगुप्त ने सिकंदर के लिए ऐसी परिस्थितियां बना दी कि उसे विश्वविजय का अपना विचार त्यागना पड़ा और वो अपने देश वापस लौट गया। ग्रीक इतिहासकारों ने सिकंदर के बारे में जो बातें लिखी है वे सही नहीं। ग्रीस इतिहास में लिखा गया है कि अपनी मृत्यु से पहले सिकंदर ने दुनिया की 50 फीसदी भूमि पर कब्जा कर लिया था, लेकिन सत्य है कि वो पृथ्वी के मात्र 5% हिस्से को ही जीत पाया था। चन्द्रगुप्त के अलावा उसके विजय रथ को रोकने में भारत के राजा पुरु का भी बड़ा योगदान था और देश के राजा पुरु को चन्द्रगुप्त के राजनीतिक गुरु चाणक्य ने ही सिकंदर से लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया था। इस युद्ध में राजा पुरु की हार हुई थी लेकिन राजा पुरु की विशाल सेना की बहादुरी को देखकर सिकंदर दंग रह गया था। 

सिकंदर की सेना को धन का लालच

बाद में सिकंदर ने राजा पुरु को उनका राज्य लौटा दिया था। सिकंदर की सेना में एवं देश से आए सैनिकों के अलावा जिन राज्यों पर उसकी सेना ने विजय हासिल की थी, उसके सैनिक थे। हारे हुए देशों और राज्यों के सैनिकों को सिकंदर की सेना में धन का लालच देकर रखा गया था। चंद्रगुप्त और आचार्य चाणक्य को यह बात पहले से पता थी। चन्द्रगुप्त ने इसी वजह से सैनिकों में देशभक्ति की ज्वाला भरने का काम किया| तक्षशिला विश्वविद्यालय के माध्यम से चाणक्य देश में राष्ट्रभक्ति की ज्वाला चला रहे थे। 

चन्द्रगुप्त मौर्य की चाणक्य नीति

सिकंदर की सेना के सैनिकों को चन्द्रगुप्त ने भड़काना शुरू किया। उनके बीच इस सवाल को जन्म दिया कि वो किसके लिए लड़ रहे हैं। क्या सिकंदर की सेना की ओर से लड़ने में उन्हें सम्मान मिलेगा? मजबूरी और धन के लालच में सिकंदर की सेना में लड़ रहे ऐसे सैनिकों को चन्द्रगुप्त द्वारा उठाए गए इन प्रश्नों ने हिलाकर रख दिया। इसके बाद सिकंदर की सेना में विद्रोह हो गया, भारतीय सैनिकों ने ग्रीस के सैनिकों की हत्या कर दी। चन्द्रगुप्त ने सिकंदर के मन मे यह बात बैठा दी कि अगर वो राज्यों को जीते हुए ऐसे ही आगे बढ़ता रहा तो पीछे राज्य में विद्रोह हो जाएगा और ये हो भी रहा था। 

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आखिरकार सिकंदर के विश्व विजय के सपने को लगाया पूर्ण विराम!

जैसे जैसे सिकंदर आगे बढ़ रहा था, जीते हुए पीछे के देशों में विद्रोह हो रहा था, जिसके बाद सिकंदर अपने सेनापति सेल्यूकस के भरोसे भारत से लौट गया था। सिकंदर स्थल मार्ग से 325 ईसा पूर्व में भारत से लौटा और 323 ईसा पूर्व में बेबीलोन में 33 साल की उम्र में उसकी मृत्यु हो गई। बाद में चन्द्रगुप्त ने सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस को हरा दिया। इस हार के बाद सेल्यूकस ने चंद्रगुप्त मौर्य से संधि कर ली थी, बाद में सेल्यूकस ने अपनी बेटी हेलेना की शादी चंद्रगुप्त से कर दी थी

तो दोस्तों, इस प्रकार वीर चन्द्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर का अहंकार तहस-नहस करके उसके विश्वविजय का सपना केवल सपना ही रहने दिया. उम्मीद है कि आपको Chandragupta Maurya History in Hindi यह आर्टिकल पसंद आया होगा. ऐसे ही आर्टिकल्स पढ़ने के लिए Jaihindutva.com को फॉलो करें.

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