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Rana Sanga History in Hindi: राजस्थान के ऐतिहासिक किताबों में कई साहसी शूरवीरों के नाम शुमार है, उनमें से एक है महाराणा संग्राम सिंह जो राणा सांगा के नाम से काफी प्रसिद्ध है| राणा सांगा को खासतौर पर उनके अमूल्य बलिदान के लिए आज भी पूजा जाता है| राजस्थान के वीर योद्धा महाराणा प्रताप के पूर्वज महाराणा संग्राम सिंह अर्थात राणा सांगा ने मेवाड़ में सन 1509 से 1528 तक शासन चलाया| उस समय के सबसे शक्तिशाली हिन्दू राजा राणा सांगा ने सभी राजपूतों को एकजुट करके विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ आवाज उठाई| उनकी वीरता और बहादुरी के कारण दिल्ली, गुजरात और मालवा में मुग़ल बादशाओं की घुसने की हिम्मत तक नहीं हुई थी|
फरवरी सन 1527 में राणा सांगा ने बयाना के युद्ध में धाकड़ मुग़ल सम्राट बाबर सेना को धूल चटाई| इसके बाद इसी वर्ष खानवा के युद्ध दौरान वीर राणा सांगा घायल हुए| उनके जख्मी होने के बाद कछवाह वंश के पृथ्वीराज कछवाह ने उन्हें बहार निकलने में काफी मदद की| घायल अवस्था में राणा सांगा को काल्पी नामक सुरक्षित जगह पर ले जाया गया| लेकिन विश्वासघात सरदारों की वजह से राणा सांगा को इस जगह जहर दिया गया| ऐसे अवस्था में राणा दोबारा बसवा आये और यहाँ 30 जनवरी, 1528 को उन्होंने आखिरी साँस ली|
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मृत्यु के बाद राणा सांगा का अंतिम संस्कार विधि विधान के साथ मांडलगढ़ के भीलवाड़ा में किया गया| अंत्यसंस्कार मांडलगढ़ करने के कारण यह है कि, राणा सांगा इसी जगह मुग़ल सेना पर तलवार से गरजे थे| युद्ध में सांगा का सिर शरीर से अलग हुआ लेकिन उनका धड़ लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ| विश्वासघाती सरदारों के कारण राणा सांगा युद्ध जरूर हारे, लेकिन यह अमूल्य बलिदान देकर उन्होंने दूसरों को प्रेरित किया|
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