Prithviraj Chauhan · July 23, 2016 4,956

शेर सिंह राणा



ओ मेरे हिंद पर नाज करने वाले हिंदुस्तानियों और चंद वरदायी के नाम लेकर गला चिल्ला चिल्ला कर ओज गीत गाने वाले कवियों कहाँ हो तुम !
कहाँ है आतंक-वादियों की मर्सी पेटिशन लगाने वाले मानवाधिकारियों कहाँ हो ! यदि यह प्रामाणिक जानकारी के बाद भी तुम चुप बैठे तो तुम जैसा शिखंडी कोई नहीं !
हे सरस्वती पुत्रो ! चंद वरदायी के वंशजो ! हे साहित्यकारों ,कवियों खुद जागो और देश को जगाओ ! सरकार को करना ही पड़ेगा रिहा शेर सिंह राणा को !
हिन्दुस्तान में जब जब सम्राट पृथ्वीराज चौहान का और महाकवि चन्दरबरदाई का नाम लिया जाएगा तो शेरे हिंद शेर सिंह राणा का नाम भी लिया जाएगा . जिस प्रकार शहीद उधम सिंह ने विदेश में जाकर जलियाँवाले बाग के कसूरवार का वध किया . नेताजी सुभाष चन्द्र ने आजाद हिंद का गठन कर अंग्रेजो को वापिस जाने पर मजबूर किया . उसी प्रकार शेर सिंह राणा ने मुगलों द्वारा सदियों से हिन्दुस्तान के गौरव को हर क्षण अपमानित करने की कुत्सित घृणित कृत्य से मुक्ति दिलवाई . जबकि भारत सरकार यह अपमानित एवं घृणित सच्चाई से अवगत थी . ना तो पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बाद किसी राजा ने न ही अंग्रेज सरकार ने और ना ही आजादी के बाद किसी भी सरकार ने इस राष्ट्रीय घोर अपमान पर सुध ली .
एतिहासिक प्रामाणिक अकाट्य तथ्य:
गुलाम भारत की हजार-आठ सौ साल में जो दुर्गति हुई है कि, भगवान ही मालिक है . सौने कि चिड़िया सुनकर भूखे-नंगे जंगली लुटेरों ने विधर्मी विदेशी नेतृत्व में यहाँ बार बार आक्रमण किये, लूटा और ऊंटों, घोड़ों पर सोना-चांदी,जवाहरात लाद लाद कर ले जाने लगे . तथा औरतों और लड़कों को भी गुलाम बना कर, अपने मुल्कों में बेचने के लिए . इसके लिए वे यहाँ के मंदिरों को भी लूटते थे,बार-बार . इनमे मुख्य थे मुहम्मद बिन कासिम , मौहम्मद गजनबी तथा मुहम्मद गौरी .गजनबी ने तो प्रसिद्द सोमनाथ का मंदिर लूटा था. गौरी ने यहाँ आकार सम्राट पृथ्वीराज चौहान से हार कर क्षमा मांगी थी . परन्तु फिर छल-कपट से आक्रमण करके जीत लिया . और देश का विजय दीप क्षीण-भिन्न हो गया . अफगानिस्तान के सुलतान मुहम्मद गौरी ने भारत के सम्राट पृथ्वीराज चौहान को छल पूर्वक युद्ध में हराया . गौरी उस समय सम्राट को पकड़ कर आँखे फोड़ दी गई . तथा जंजीरों में जकड़ कर अपने गजनी(अफगानिस्तान)ले गया था . परन्तु सम्राट के मित्र कवि चंद वरदायी ने सुलतान गौरी को सम्राट पृथ्वीराज के शब्द-बेधी बाण के चमत्कार से प्रभावित करके उसको प्रदर्शित करने के लिए गौरी की सभा में आयोजन करने में सफलता प्राप्त कर ली थी. अत: उसने सम्राट के पास से, ऊपर बैठे सुलतान के पास जाकर दूरी आदि को नाप लिया और सम्राट(बिना आँख के) केवल आवाज पर धनुष-बाण का निशाना लगा देने का करतब करने के लिए कहा-
चार बांस , चौबीस गज , अंगुल अष्ट प्रमाण .
ता ऊपर सुलतान है मत चूको चहुआंण ..
इस प्रकार सुलतान ने जैसे ही कहा मारोतो सम्राट के बाण ने उसे ही मार दिया . फिर चंद वरदायी ने पृथ्वीराज का सर काट दिया अपनी तलवार से और जीवित चौहान ने उसी तलवार से मित्र चंद वरदायी का , और दोनों मित्र वही मर गए .यह बहुत बड़ी बात थी, बदला लेने की घटना . इसके बाद उन दोनों सपूतो के शवों के साथ क्या हुआ होगा . इसकी खोज-खबर नहीं ली गई आज तक .
यह तो जब इन्डियन एयरलाइंस के जहाज को काठमांडू से हाइजेक करके काबुल(अफगानिस्तान) ले जाया गया था. वहाँ के तालिबान के शासन में तो उसके डेढ़ सौ यात्रियों को बचाने के लिए उन आतंकवादियों की शर्तों के अनुसार यहां से उनके कैदियों को लेकर तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह के साथ गए पत्रकारों में से एक ने लौटने पर रहस्योद्घाटन किया था कि, हमारे अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान और चंद वरदायी कि कब्र है . सुलतान गौरी की कब्र के बाहर और वहाँ जूता रखा रहता है जिसे वहाँ के लोग सम्राट की तथा चंद वरदायी कब्र पर २-२ जूता मार कर ही अंदर सुलतान गौरी की कब्र पर जियारत के लिए जाते है .
इस सनसनी-खेज समाचार ने देश में हडकंप मच गया. आंदोलन होने लगे. उस समाधि(कब्र) को सम्मान-पूर्वक यहाँ लाकर उनका विधिवत अंतिम संस्कार करने के लिए .उस समय विश्व क्षत्रिय महासभा द्वारा भी दिल्ली में संसद भवन के सामने जंतर-मंतर पर धरने तथा सरकार को ज्ञापन भी दिए गए और संसद भवन में कुछ सांसदों द्वारा प्रश्न भी पुछ्वाये गए. परन्तु संभवत: उस समय तालिबान के आतंक के कारण, कुछ नहीं हो सकने से उन विदेश मंत्री ने ब्यान दिया था कि, कुछ इतिहासकार था क्षत्रिय विद्वान भी प्रयास कि, सम्राट कि मृत्यु भारत में ही हुई है , रणभूमि में या जेल(देहली अथवा अजमेर की), गजनी में नहीं .
परन्तु यह रहस्य पहले भी भारतीय विद्वान के एक अंग्रेजी अखबार के लेख में, वहाँ अफगानिस्तान में कार से जाते समय रास्ते में उन्होंने यह सब देखा था तथा वाराणसी में एक अघोर पंथ के महात्मा की जीवनी में प्रकाशित भी हुआ था कि, गजनी के कब्र के बाहर सम्राट पृथ्वीराज कि समाधि पर वहाँ के लोग जूते मारते है. क्यूंकि उन्होंने उनके सुलतान गौरी को धोखे से मार था . परन्तु इस वारदात के पक्ष-विपक्ष में लेखो का प्रकाशन काफी समय तक चलता रहा और देश भ्रमित हो गया . अत: इस विषय में निर्णय के लिए विश्व क्षत्रिय महासभा द्वारा वाराणसी में महात्मा गांधी कशी विद्यापीठ के इतिहास विभाग में सेमीनार करने के साथ ही किसी प्रकार अफगानिस्तान भी जाने के प्रयास किये गए . उस समय विश्व हिंदू परिषद के आचार्य गिरिराज किशोर, संसद अमर सिंह तथा पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर आदि का दल भी इसके लिए अफगानिस्तान जाने के प्रयास में था . किन्तु बात नहीं बनी तत्कालीन तालिबान सरकार ने अनुमति नहीं दी .
आश्चर्य है कि पाप का घड़ा फूटा . क्यूंकि उस समय अफगानिस्तान में तालिबान का शासन में दुनियां कड़े विरोध के बावजूद महात्मा बुद्ध कि प्रतिमाओं को विस्फोटो से नष्ट किया और उसमे देरी के नाम पर सौ गों का क़त्ल भी किया, राक्षसों की तरह . अत: प्रभु इच्छा से, उस पर अमरीका का आक्रमण हुआ और उसका सरगना लादेन तो छुप गया , परन्तु अफगानिस्तान से तालिबान नेस्ताबुद हो गया . अब वहाँ जाना आसान होने पर भी बताया गया है कि , उस स्थान पर भी भी खतरा है और वहाँ कि सरकार इन्जार करने कि सलाह दे रही है, तो क्या किया जाए सब्र के सिवाय .
परन्तु कुछ अपने समाज के भी बुद्धिजीवियों कि अकर्मण्यता से सम्राट की कथित समाधि को अफगानिस्तान के तालिबानियों द्वारा अपमान को यहाँ विवाद बनाकर कुछ न करने की अपीलों से समाज गुमराह हो रहा था ……….
इधर जेल में बंद शेरू महाराणा प्रताप वीर शिवाजी और नेताजी सुभाष की जीवनी पढ़ पढ़ कर अपने जीवन का अर्थ खोजने में लगा हुआ था . उसको भी समाचार-पत्रों के माध्यम से पृथ्वीराज चौहान और चंद वरदायी की समाधियों को जूतों से पिटने के प्रकरण से आक्रोशित कर दिया . वहीँ जेल में उसके साथ तालिबानी आतंकवादी भी थे जो इसकी मजाक किया करते थे …..कि ८०० सालो में ऐसा कोई कोई पैदा नहीं हुआ जो वहाँ जाकर कब्र को ला सके .क्यूंकि जेल से निकल कर वहाँ जाने से भी अधिक जाकर वापिस आना नामुमकिन है . अत: शेरू तिहाड़ जेल से भागने में कुछ लोगो के सहयोग से १७ फ़रवरी २००४ को को सफल हो गया. डॉ कुलदीप तोमर के अनुसार के अनुसार- शेरू ने किसी तरह झारखंड की राजधानी रची में जाकर संजय गुप्ता के नाम से अपना पासपोर्ट बनवाया और बंगलादेश चले गए .क्यूंकि यहाँ उन पर पचास हजार रूपये का इनाम पुलिस-प्रशासन द्वारा घोषित हो गया था. वहाँ उन्होंने अफगानिस्तान का वीसा लेने का प्रयास किया तो वहाँ के दूतावास के कुछ लोगो से पहचान कर साथ में काम करने में करोड़ों रुपयों का लालच दिया था . अत: दिसम्बर २००४ में उन्होंने मुंबई से अफगानिस्तान का वीसा प्राप्त करना पड़ा और जाने कि सभी तैयारियां पूरी की . परन्तु चूँकि उस समय अफगानिस्तान में केवल दिल्ली या पकिस्तान से भी जाना कठिन था . अत: वे दुबई जाकर अफगानिस्तान पहुंचे और तीन महीने के कठिन परिश्रम तथा जीवन को संकटों में डालकर मार्च २००५ में सफल होकर हिदुस्तान वापस आये .
आपरेशन आत्म-गौरव:
धर्मस्य तत्वम निहितं गुहयाम ,
महाजनो एन गत: स पन्था.
उस समय हिदुस्तान में सम्राट पृथ्वीराज चौहान और चंद वरदायी के अवशेषों के अपमान कि अफगानिस्तान वाली खबरे देशभक्तों को उद्वेलित कर रही थी .परन्तु भारत की राजधानी में देश की सबसे प्रमुख जेल में कैदी उस अद्वितीय वीर शेरू को प्रेरणा हुई और वह उस जेल से कैसे निकल गया. यह खबर बड़ा हडकंप मचाने वाली थी , उस जेल प्रशासन तथा तत्कालीन सरकार के लिए .परन्तु पुरे देश के लिए प्रसन्नता तथा आश्चर्य की थी कि उस शेरू का कहीं कोई सुराग नहीं मिल रहा था.अत: लोग अटकलें लगाने लगे औरकुछ तो तुलना करने लगे शिवाजी और नेताजी सुभाष के निकल जाने से.
वह वीर बालक शेर सिंह राणा (शेरू) दिल्ली कि तिहाड़ जेल से निकल कर अफगानिस्तान पहुचां था. सम्राट पृथ्वीराज चौहान एवं चंद वरदायी की समाधि(कब्र) पर और वहाँ की स्थिति समझ कर वीडियो की दूकान से विडियों-ग्राफी का इंतजाम करके मिटटी-पत्थर खोदने के औजार आदि के साथ वहाँ पहुँच कर कब्र की अस्थियों युक्त मिटटी, जूती तथा शिला-पट आदि निकाल लाया . जिसका हिन्दुस्तान में जगह जगह प्रदर्शन होने के बाद उनको पूरी श्रद्धा के साथ समाधिस्थ किया गया .
यहाँ काबुल हवाई अड्डा से आगे इन्डियन एम्बेसी पर तिरंगा झंडा फहरता है और बगल में ईरान एम्बेसी भी है . २० कि.मी. पर कंधार शहर में बड़ा गेट है भारत के इण्डिया गेट कि तरह जिस में कुरआन का कुछ लिखा है तथा दीवालो पर कुछ पोस्टर-चित्र(१) चिपके थे इसके अंदर बाएं वहाँ का गवर्नर हाउस है . तथा बाजार में रात की रौशनी में रौनक रहती है . वहाँ पर अहमदशाह बाबा की मजार के पास अंग्रेजी में लिखा बोर्ड भी है .जिसके बगल में दूसरी इमारत में मुहम्मद साहब की जैकेट भी रखी है. यह कंधार के मुख्य चौक पर शहीद पार्क के पास है . जहाँ सिक्योरटी गार्ड तैनात है तथा सामने ऊँची इमारत पर होर्डिंग पर चित्र है और उनकी भाषा में कुछ लिखा है .
वहाँ से चले तो पहाड़ियां और दूर बस्ती में मुल्ला का ऊँचा सफ़ेद मकान तथा आगे बड़ी इमारते तथा बाजार से ऊंचाई पर भीड़ रहती है और यहाँ जैसी गाडियां होती है . (चित्र२-३)यहाँ सड़क पर कई अफगानी एक दूसरे के हाथ पकड़ नाच कर मन्नत मनाते है, देवी किसी के सर आने की तरह मस्जिद के सामने अल्लाह अल्लाह कर पागल से झूमते है . कच्ची ऊँची नीची पहाड़ियों के बीच से कच्चे रोड के बाद वहाँ का थाना भी है . तथा मेन रोड(हाई-वे) भारत का बनाया हुआ पकिस्तान से अरब जाने का,(चित्र-४)जहाँ तालिबानी मदरसा , एक बैंक और आगे पहाड़ी के बीच बाबा की सुन्दर बड़ी-मजार(चित्र-५) में फानूस भी लगा हुआ है .
काबुल हवाई अड्डा से २० किलोमीटर पर २ घंटे के रास्ते पर है . जहाँ चौराहे से ऊपर पैदल २ घंटे बर्फ पर चढ़ाई के बाद शाहबुद्दीन मुहम्मद गौरी के वालिद(पिता) की छोटे से कटघरे में ताला लगी मजार है .तथा बगल में छोटी सी मस्जिद में २-४ लोग रहते है .वहाँ से भी एक पत्थर का टुकड़ा लिया भी इस शेरू ने निशानी के तौर पर .बगल में दूसरी मजार (बड़ी) सुलतान गयासुद्दीन(बड़े भाई) पर अरबी में लिखा है. यहं भी मस्जिद बड़ी(चित्र-१०)है, जहाँ कुरान तथा पत्थर के टुकड़े रखे है.इसने वहाँ के गजनी को जीता था ८०० साल पहले. जिसे भारत के महाराजा गज ने बसाया था .इस मजार में कब्र के बगल में एक छोटी कब्र तथा किनारे एक बहुत सामान्य कब्र भी है .इस मजार के पीछे किला(चित्र-११) है , जहाँ लिखा है(अंग्रेजी में) हिस्टोरिकल केसल आफ(चित्र-१२) वहाँ एक जियारत में ५-६ कब्र और संगमरमर के टुकड़े बन रहे भी पड़े थे. वहाँ बिजली के तार-खंभे, गाडियां तथा एक बोर्ड पर गोहरशाद गार्डन(अंग्रेजी में) लिखा है , जहाँ परिवार सहित बेगमों की कब्र है .
वहाँ पुराने गजनी शहर में एक मकान में दान शहीद मंदिर में श्रीमभ्दागवत(चित्र-१३) वहाँ के सेवादार परिवार के अनुसार २ हाजार साल की उसकी मूर्ति है . उस समय से १० साल पहले कशी(भारत) भेज दी गई थी .पास ही भैरोनाथ के मंदिर में १५ साल से अंदर जाना बंद है . उसके ऊपर बाबा तीरथ नाथ के मंदिर(चित्र-१४ में शेरू तथा मिलाप चंद सेवादार) में ऊ(ओउम्) भी लिखा है . तथा बाबाजी की खडाऊं भी रखी है .
वहाँ आगे जाने पर गजनबी का रौजा सुल्ताने गजनबी की मजार है, जिसके बड़े गेट के बाहर २-३ लोग बैठे रहते है और अंदर लम्बा टंगा पर लिखा कपडों पर फानूस भी है. दो बांस पर झंडानुमा तथा कुरान भी रखा है .और माजर पर मखमली कड़ा कपड़ा ओढाया हुआ है.संगमरमर लगे है, गलीचा बिछा है गेट पर दो चेन हिन्दुस्तान के शाहजाहाँ बादशाह ने लगवाई थी . उसे लोग लोग चूम कर अंदर जाते है . जो वहाँ के हाजी ने बनाया था. सुलतान अब्दुल रजाक की पुरानी टूटी जियारत के बगल में भाईजान गवर्नर की मजार है , जहाँ बहार बर्फ पड़ी है. पार्क बाहर है जहाँ बैंचे, बच्चों के झूले-सरकने के आदि झूले लगे हुए है . तथा गेट पर दोनों तरफ बहुत कब्रे और झंडे भी लगे है. एक तरफ शहर में महमूद गजनी की फोटो तथा बोर्ड पर गुडबाय(अंग्रेजी में) लिखा है.
अंत में गजनी शहर पर ही बाजार की (चित्र-१७) तथा रास्ते में बर्फ भी(चित्र-१८), काबुल से कंधार रोड पर सासन बाजार में दो बोर्डो पर लिखा है . गजनी टू गार्देज रोड(अंग्रेजी में) जहाँ करे-बसे चलती है. फिर कच्ची सड़क पर कई फुट ऊँची बर्फ, टीले-पहाड़ी के भीतरी कच्ची सड़क बियाबान के आगे दीयक गाँव के बाजार तथा बाहर के किनारे एक छोटा सा मकबरा (चित्र-१९)है, जो पहले वहाँ की जेल में कैदियों की आँखे फोड़कर डाल देते थे . उसके दरवाजे पर थोड़ा पलास्तर उतरा है तथा कच्ची कब्र(चित्र-२०) है (लम्बी) मिटटी के ढेर की, जो वहाँ के बूढ़े, जवान, बच्चो के अनुसार हिंद के सुलतान चौहान की है. जिसके सिरहाने नागरा जूती जोड़ा रखा है उस पर जूती मार कर अंदर जाने के लिए . साथ ही, गेट के दाए उसके दोस्त की(चित्र-२१) बताई गई उन लोगो द्वारा जो चंद वरदायी की है.
ये नागरा जूती रात में मजार के अंदर(चित्र-२२) सामने ताखे पर रखे जाते है. यहाँ शहाबुद्दीन गौरी की कब्र(चित्र-२३) है. अब पचास वर्ष से सुलतान द्वारा पक्की बनवाई गई है . जिसकी हत्या सुलतान चौहान ने की थी .इसलिए काफिरों को मारने वाला गाजी तथा काफ़िर से मारा गया शहीद कहा जाता है . इसलिए मजार के ऊपर लिखा है , अरबी-फारसी में कि ऐसा शेर कभी न पैदा हुआ है न पैदा होगा . यहाँ लाल कालीन डिजाइनदार भी बिछा है और चारो तरफ अलकायदा तथा तालिबान लोगो के घर है .जहाँ ४-५ एके ४७ हथियार हर घर में है .इसलिए वहाँ हिंदू का आना जाना बहुत मुश्किल है. और वहाँ से कुछ लाना तो मौत. वहाँ की फोटो लेना भी जियारत के समय सख्त मन थी, जो बड़ी तरकीब से रात के अँधेरे में रखे सब किया शेरू ने (चित्र-२४). तथापि शेरू ने काफी शिवाजी नीति से अस्थियां भारत में अपनी माँ को बर्थडे गिफ्ट पैक के रूप में पार्सल कर दी .
काफी समय बाद एकाएक देश के टीवी तथा समाचार-पत्रों में सनसनी भरे समाचार आने लगे कि शेरसिंह राणा , जिसने अफगानिस्तान से मरात्प्रिथ्विराज चौहान और चंद वरदायी कि कब्र की अस्थियों युक्त मिटटी, उस पर मारे जाने वाली जूतियाँ तथा वहाँ का विवरण-पट सहित वहाँ की विडियों-ग्राफी की सीडी भी भारत में लाकर क्षत्रिय समाज को सौपी थी .और उन्हें यहाँ समारोह-पूर्वक जगह जगह ले जाकर प्रदर्शित भी किया जाने लगा तथा क्षत्रिय महासभा ने उत्तर प्रदेश में कानपुर के पास बेवर में स्थापित कराया .शेर सिंह रना के पूज्य माता माँ सत्यवती राणा के हाथों. इस अद्वितीय उत्साह बहादुरी तथा चमत्कार की चारो और सराहना होने लगी और कुछ दुराग्रहियों द्वारा पहले की तरह अविश्वास ,साथ ही जो लोग अफगानिस्तान जाकर वस्तु-स्थिति का पता लगाना चाहते थे उनको भी संतोष हुआ और तेज हो गई फिर से अपने अंतिम सम्राट की अस्थियों को अफगानिस्तान सरकार के सहयोग से भारत सरकार द्वारा ससम्मान यहाँ लाकर विधिवत अंतिम संस्कार करने की मांग.
इधर पुलिस ने खीझ कर शेरू के दोनों भाई विक्रम राणा तथा विजय राणा सहित १९ लोगो को फरार करने के आरोप में तिहाड जेल में डाल दिया और शेरू के पिता के इससे बीमार होकर मृत्यु होने पर विक्रम या विजय किसी बेटे को पिता के दह-कर्म के लिए भी जाने नहीं दिया गया. लाचार विधवा सत्यवती राणा अकेली अपने दोनों बेटो की तिहाड़ जेल में खोज-खबर तथा मुकद्दमो के लिए रुड़की से दिल्ली भटक रही थी.
अत: यहाँ की पुलिस फिर सक्रीय हो गई, शेर सिंह राणा को पकडने के लिए. क्यूंकि उसके जेल से निकल जाने से अनेक पुलिस-कर्मियों के खिलाफ कार्यवाही भी हुई थी और तिहाड़ जेल की व्यवस्था की पोल खुल गई थी. चूँकि अब शेरू का मिशन पूरा हो चूका था. उसने अप्रेल २००५ में बाकायदा टीवी पर कलकत्ता से साक्षात्कार देकर आत्मसमर्पण करने की घोषणा की थी. अत: पुलिस वहाँ पहुंची, परन्तु पुलिस ने उसे गिरफ्तारी दिखाई आत्म-समर्पण नहीं. यही है पुलिसिया करतूत .
आह्वान:

हे सरस्वती पुत्रो सम्राट पृथ्वीराज चौहान के साथ कवि शिरोमणि चंद वरदायी हम सब के प्रेरणा स्त्रोत है . चंद वरदायी की भांति हम परम्परा के कवि बनना चाहते है ! उस कवि ऋषि चंद वरदायी की समाधी का सम्राट पृथ्वीराज चौहान के साथ गजनी में अनेक सदियों से अपमान होता रहा .८०० सौ वर्ष से अधिक के कालखंड में हिन्दुस्तान जाने-अनजाने घृणित अपमान झेलता रहा. मेरा स्पष्ट सगर्व घोषणा करता हूँ कि शेर सिंह राणा अवतरित नेताजी सुभाष ,शहीद उधम सिंह है !
आप सभी कवियों साहित्यकारों से निवेदन है कि आप अपनी रचनाधर्मिता का परिचय दे ! शेर सिंह राणा को अपने कवित गीतों और लेखों के माध्यम से प्रचारित कर एहसान फ़रामोश सरकार से रिहा कराये . आतंकवादियों को बिरयानी खिलाने वाली सरकार केवल उग्र समाज की ही सुनती है ……..सो यह अभियान अभियान न होकर हम साहित्यकारों का शिव-संकल्प हो !

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