शक्तिसिंह ने महाराणा प्रताप को घायल शारीर को लादे हुए चेतक को भागते देख लिया था. उसने ये भी देखा की झाला नरेश ने किस तरह अपनी जान देकर महाराणा प्रताप को बचाया था. प्रताप के लिए हजारों राजपूत हसते हसते अपनी जान न्योछावर कर गए. और तीन दिन के भीषण युद्ध के सामने मुग़ल सेना त्राहि त्राहि कर उठी थी. यह सब देख कर शक्तिसिंह को बहुत पछतावा होने लगा. हजारों राजपूतों को लाशों का ढेर बनाने एवं देवता सामान भाई की प्राण को संकट में डालने के लिए शक्तिसिंह ही जिम्मेदार था. यदि उसने हल्दीघाटी में घुसने और महाराणा प्रताप की कमजोरियों को मुगलों के सामने ना बताया होता तो आज के युद्ध का परिणाम कुछ और ही होता, और इतिहास महाराणा प्रताप के साथ साथ शक्तिसिंह पर भी उतना ही गर्व करता. शक्ति सिंह तुरंत ही अपने घोड़े की ऐड लगाई और उधर चल पड़ा जिस ओर चेतक गया था. इधर सलीम ने घोषणा कर दिया की प्रताप युद्ध के मैदान से जिन्दा भाग गए है उसको जिन्दा पकड़ कर लाने वाले को भरी इनाम दिया जायेगा. दो मुग़ल सैनिको को शक्तिसिंह ने प्रताप का पीछा करते हुए पाया.शक्तिसिंह समझ गया की मुग़ल शहजादा से भरी इनाम के लालच में घायल राणा प्रताप का पीछा कर रहे है. शक्तिसिंह ने अपने घोड़े को वायु वेग से दौड़ाया. युद्ध के मैदान से निकलने के बाद चेतक की गति कुछ धीमी पद गयी थी..चेतक के पैर से भी रक्त की धारा बहे जा रही थी. महाराणा प्रताप लगभग लगभग अछेत की स्थिति में हो चुके थे. अचानक महाराणा प्रताप को घोड़े की ताप सुनाई दी जब उन्होंने पीछे पलट के देखा तो दो मुग़ल सैनिक उनका वायु वेग से हाथ में तलवार लिए उनकी ओर आ रहे है, चेतक भी बहुत तेज़ी से भागा, परन्तु दुर्भाग्य वश एक बड़ा सा नाला उनके बीच आ गया. वो नाला एक पहाड़ी को दुसरे पहाड़ी से अलग करता था, उन दोनों पहाड़ियों के बीच की लम्बाई 27 फूट की बताई जाती है, चेतक वो घोडा था जो अपनी स्वामी की इशारे को अच्छी तरह से समझता था, वो अपने स्वामी के इशारे से वायु वेग में दौड़ना जानटा था. ऐसा करते समय वो अपने प्राणों की परवाह तक न करता था. उसने बिना एक पल के देरी के उस नाले में जोरदार छलांग लगा दिया. परन्तु घायल चेतक उस पार जाने के बाद दुबारा फिर कभी नहीं उठ पाया, महाराणा प्रताप तो सकुशल थे पर एक मूक जीव ने अपने स्वामीभक्ति दिखाते हुए वीरगति को प्राप्त किया और अपना नाम इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में लिखवा गया. युद्ध में घायल महाराणा प्रताप की उस समय बड़ी ही असहाय स्थिति हो गयी. महाराणा प्रताप के शारीर से टिके अर्ध्मुछित से चेतक की मृत्यु पर रो पड़े. जब उन दो मुगलों ने ये देखा तो वे आश्चर्य से देखते रह गए, उन्होंने अपने घोड़े को भी उस नाला को पार करने का आदेश दिया पर हर घोडा चेतक नहीं हो सकता है. शक्ति सिंह भी ये सारा नजारा देख रहा था. उस समय उसके ह्रदय में अपने प्रति ग्लानी की भावना प्रकट होने लगी वह अपने आप को कोशने लगा की जब मेवाड़ का एक एक पशु अपने मातृभूमि और अपने स्वामिभक्ति में अपना प्राण न्योछावर कर सकता है तो मैं तो फिर भी मनुष्य हूँ. दोनों मुग़ल सैनिक नाला पार कर महाराणा प्रताप की ओर बढ़ने लगे. जैसे ही दोनो मुग़ल सैनिक ने महाराणा प्रताप में प्राण घातक वार करने का प्रयास किया वैसे ही शक्तिसिंह ने विद्युत् गति से झपटकर दोनों की गर्दने काट दी, जब महाराणा प्रताप ने चौंक कर पीछे पलट कर देखा- तो उन्होंने पाया की पीछे मुग़ल सैनिको की लाशे पड़ी हुई है. और शक्तिसिंह दोनों हाथ जोड़े अपने घुटने पर बैठा हुआ है. शक्तिसिंह…एक भावुकता भरी आवाज महाराणा के मुख से निकल पड़ी. और शक्ति सिंह हाथ जोड़े अपने घुटने पर बैठा रहा. अच्छा हुआ तुम आ गए इस समय मैं पूरी तरह से असहाय हूँ, लहूलुहान हूँ, मेरे प्रिय चेतक की मौत ने मुझे जीते जी मार डाला है,इस समय मैं तलवार नहीं उठाऊंगा तुम अपनी इच्छा पूरी कर लो.राणा ने चेतक की कमर में से जब अपना चेहरा उठाया तो शक्ति सिंह की चीख निकल गयी. नहीं भैया नहीं मैं आपकी आँखों में आंसू नहीं देख सकता. राणा ने फिर गर्दन घुमा ली और फिर चेतक के शारीर से लिपट कर रोने लगे. राणा को रोते हुए देख शक्तसिंह भी रो पड़ा.उसने कहा भैया इस सब का जिम्मेदार मैं हूँ. आपसे प्रतिशोध लेने की भावना में मैं पागल हो गया था. यह कहकर शक्तिसिंह फूटफूट का रोने लगा. उसने तुरंत ही अपने आप को संभाला और और फिर राणा प्रताप के पास जा कर कहने लगा मैं जनता हूँ की मैं क्षमा के योग्य नहीं हूँ परन्तु आप मुझे एक बार क्षमा कर दीजिये मुझे एक बार आप गले से लगा लीजिये….और शक्तिसिंह फिर रो पड़ा. प्रताप ने गर्दन उठाई उनका चेहरा खून और आसुओं से सना था. तुम मेरे ही नहीं पुरे मेवाड़ के अपराधी हो शक्ति सिंह तुमने अपने मातृभूमि के साथ विश्वासघात किया है. अब मैं तुम्हारी आँखों में प्रायश्चित के आंसू देख रहा हूँ. जी करता हूँ की अपने छोटे भाई को गले लगा लूँ. परन्तु यह क्षत्रिये धर्म मुझे इसकी अनुमति नहीं देता है, मैं मेवाड़ी सिपाही हूँ और तुम मेवाड़ द्रोही शत्रु सैनिक. यह कहकर राणा ने गर्दन घुमाई और फिर शक्तिसिंह को देखे बगैर ही बोले शक्तिसिंह तुम मेरी नजरों से दूर हो जाओ मैं नहीं चाहता की मेरे मन में कोई कमजोरी उभरे . मैं जा रहा हूँ भैया. शक्ति सिंह ने भाववेग से थर्राते हुए कहा- बस मेरा एक निवेदन मान लो मेरा ये घोड़ा लो और तुरंत ही यहाँ से दूर चले जाओ. आपको मेवाड़ की जरुरत है. आप यह युद्ध हारे नहीं है केवल ऐसी परिस्थिति आ गयी है की युद्ध को रोकना पड़ रहा है. और आब आपके चरणों की सौंगंध है की मेरी ये तलवार अब मेवाड़ के साथ होगी. अपनी करनी से मैं अपने पर लगे इस्कलांक को धो डालूँगा और अगर जिविर्ट बचा तोह आपके गले लगूंगा. प्रताप सिंह शक्तिसिंह की बातें सुनते रहे. उनके आँखों से बहते हुए आंसू उनके चेहरे पर लगे हुए खून को धोते रहे. परन्तु शक्तिसिंह अब ये नहीं देख पाया था की अब जो आंसू राणा की आँखों से बह रहे थे वो अपने छोटे भाई के लिए थे,परन्तु वह रे क्षत्र्ये धर्म, उस क्षत्रिये शूरवीर राणा ने अपने भाई से वो आंसू छुपा लिए और धर्म तथा भाई में से धर्म को ज्यादा महत्त्व देकर धर्म को विजय स्थापित किया. राणा ने अपने आप को संभाला वे उठे शक्तिसिंह का घोड़ा ले लिया , शक्तिसिंह नजरें झुकाए खड़ा रहा उसके आँखों में प्रायश्चित के आंसू बह रहे थे. मैं तुम्हारा ये एहसान कभी नहीं भूलूंगा शक्तिसिंह, तुमने मुझ अर्धमूर्छित की जान लेने वाले मुग़ल सैनिक को मार कर मेरी जान बचाई है और अभी सुरक्षित स्थान पर पहुँचने के लिए अपना घोडा दे रहे हो.मेवाड़ याद रखेगा तुम्हारी ये भूमिका. राणा तुरंत घोड़े पर सवार हुए, उनके चरण छूने के लिए शक्तिसिंह ने हाथ आगे बढ़ाये पर तबतक राणा घोड़े की ऐड ले चुके थे. वायुवेग से घोड़े दौडाते हुए राणा कुछ ही समय में शक्तिसिंह की आँखों से ओझल हो गए.
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